Artistic Talent

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Sunday, 29 November 2020

पंजाब के ही किसान संघर्ष पर क्यों

देश की समृद्धि के लिए निरंतर कार्य कर रही मोदी सरकार विभिन्न पहलुओं पर अध्ययन करते हुए नई नीतियों के माध्यम से पहल कर रही है। देश की आजादी के बाद 70 वर्ष से अधिक बीत जाने के बाद भी बहुत ऐसे पहलू हैं जिन पर पिछली सरकारों का ध्यान नहीं पहुंच पाया अथवा यह समझा जाए की इन पहलुओं पर काम नहीं किया गया। 

भारत एक कृषि प्रधान देश है इसलिए भारत की उन्नति में किसानों का सर्वाधिक योगदान आवश्यक है। हमारे देश के किसान से देश, समाज और संस्कृति जीवंत है। भारत का किसान भारत की आत्मा है और वह अपने कठिन परिश्रम से पूरे देश के लिए अन्नू उगाता है यूं कहें कि भारत में कृषि से संबंधित अत्याधुनिक उपकरणों का आज भी अभाव है तथा किसानों के उप जाए हुए अन्न की दलाली करने वाले बिचौलिए देश में मालामाल है जबकि अन्नू उपजाने वाले किसान को उसके परिश्रम का उचित मूल्य नहीं मिल पाता है खेती में लागत अधिक लगने के कारण अधिकांश किसानों को जीवन यापन करने में काफी कठिनाइयां आ रही है इसके चलते कांग्रेस के शासनकाल में महाराष्ट्र के कई किसानों ने आत्महत्या तक की थी। 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश के अन्नदाताओं की समस्याओं को जड़ से समाप्त करने के लिए बिचौलिए तथा अन्न को खरीदने वालों को लेकर नई नीतियों को बनाया है ताकि किसानों को उनके श्रम का उचित मूल्य निश्चित समय में दिलाया जा सके। वर्तमान समय में प्रधानमंत्री मोदी ने अन्नदाताओं को सम्मान निधि उनके खातों में सीधे देकर एक बहुत ही अच्छा कार्य किया है जिसके कारण वास्तविक गरीब किसानों के अंदर मोदी सरकार की नीतियों को लेकर उत्साह है। 

नई किसान नीति के अंतर्गत देश के अन्नदाताओं को उनके अन्न के लिए भुगतान 3 दिन के अंदर किया जाना निश्चित किया गया है। यदि किसी कारणवश किसानों को उनके अन्न के भुगतान की राशि समय से नहीं मिल पाती है तो ऐसी स्थिति में जिले के एसडीएम कार्यालय में शिकायत करने पर एक माह के अंदर अधिकारी द्वारा निश्चित रूप से भुगतान कराना अनिवार्य होगा। 

वर्तमान समय में पंजाब और हरियाणा के किसानों द्वारा इस नीति का विरोध करना यह बताता है कि पंजाब और हरियाणा के ही किसान परेशान हैं अथवा सरकार द्वारा लगाई गई किसान की इस नीति से केवल पंजाब और हरियाणा के किसानों को घाटा हो रहा है अथवा इसका एक और भी कारण है पंजाब में कांग्रेस शासन है और पंजाब का किसान समृद्ध एवं शक्तिशाली है। इस संघर्ष में राजनैतिक रंग भी नजर आ रहा है। 

यदि किसानों को इस नई नीति से असंतोष है तो ऐसी स्थिति में उन्हें अपनी मांगों को केंद्र सरकार के समक्ष रखने का पूरा अधिकार है। यदि किसानों की सही मांगों को नहीं माना जाता है तो ऐसी स्थिति में धरना, प्रदर्शन, संघर्ष आदि का सहारा लेना चाहिए। अपनी आवाज को संसद में अपने क्षेत्रीय सांसदों द्वारा उठाया जाना चाहिए ऐसा करने से हम अपने देश के नागरिक होने का सम्मान तो पाते ही हैं साथ में अपनी बात कहने का उचित माध्यम भी बन सकते हैं। 







Friday, 17 July 2020

योग्यता पर जातीय बेड़िया क्यों?

जब देश के युवाओं में योग्यता हो, प्रतिभा हो और उस प्रतिभा के आधार पर प्रतिभावान युवाओं को देश सेवा करने के लिए उपयुक्त पद देकर सेवाएं ली जाएं तो वह समाज, वह देश उन्नति करता है क्योंकि योग्य व्यक्ति ही अपने पद का, अपने उत्तरदायित्व का सही प्रकार से निर्वहन कर सकता है। 


जैसे कि उदाहरण के लिए कोई दो विद्यार्थी डॉक्टरी की पढ़ाई (सीपीएमटी) के लिए प्रवेश परीक्षा में पहला 60% अंक प्राप्त करता हैं और दूसरा 5 परसेंट अंक प्राप्त करता है क्योंकि आरक्षित सीट होने के कारण आरक्षण जाति का 5% अंक पाने वाला बच्चा सीपीएमटी में डॉक्टर बनने के लिए चुन लिया जाता है वहीं पर सामान्य वर्ग का 60% अंक पाने वाला विद्यार्थी योग्य होते हुए भी उसे अवसर नहीं दिया जाता है। ऐसी स्थिति में 5 परसेंट प्राप्त करने वाला छात्र डॉक्टरी की पढ़ाई में कहां तक सफल होगा यह आप लोग भली प्रकार से जानते हैं। ऐसे डॉ आरक्षण का लाभ उठाकर सरकारी विभाग में नौकरी पा जाते हैं और कोटे से बने अयोग्य डॉक्टर जब जनता को अपनी सेवाएं देंगे तो निश्चित रूप से जनता के साथ अन्याय होता है। 


इसी प्रकार अन्य विभागों में जब योग्य छात्रों को अवसर नहीं दिया जाएगा उस स्थिति में अयोग्य व्यक्ति उन पदों पर अपनी अक्षमताओं के अनुसार कार्य करेंगे। ऐसी स्थिति में वह बच्चे निश्चित रूप से उस पद के उत्तरदायित्व को गंभीरता और सत्यता के साथ नहीं निभा पाएंगे। इस कारण पदों के उत्तरदायित्व से संबंधित कार्यों में अनेक बाधाएं उत्पन्न होंगी जोकि देश के विकास और उन्नति को दीमक की तरह से चाट जाएंगी और देश प्रगति की हर कड़ी कमजोर हो जाएगी उसके दुष्परिणाम जनता को भोगने पड़ेंगे। धीरे धीरे यह समस्या देश को गुलामी की ओर ले जाएगी वहीं दूसरी तरफ जातिगत आरक्षण के कारण सामान्य एवं आरक्षित वर्ग में कटुता बढ़ेगी क्योंकि एक तरफ योग्य व्यक्ति को सरकार की नीतियों के चलते रोजगार नहीं मिलेगा वहीं पर अयोग्य व्यक्ति रोजगार पाकर उसका दुरुपयोग करेंगे। उन्हें पता है कि हमें तो नौकरी मिल ही जाएगी क्योंकि आरक्षण हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है ऐसी भावना जनता में जातीय संघर्ष को जन्म देगी ।


इस प्रकार योग्यता को जातीय बेेड़िया पहनाना कहां तक उचित है यह गंभीर विषय है। इस पर विचार कर इस समस्या के समाधान को शीघ्र लाना होगा। आरक्षण देने का मूल उद्देश्य क्या है? इस विषय पर समीक्षा करना वर्तमान सरकार को आवश्यक है। भारतीय समाज को समानता के साथ अधिकार देने के लिए आरक्षण का प्रावधान किया गया था। आरक्षण का उद्देश्य अयोग्य को नौकरी देना नहीं है आरक्षण का मूल उद्देश्य उन सभी कमजोर जातियों के लोगों को समाज में बराबर सहभागिता करते हुए योग्य बनाना है अर्थात आरक्षण के अंतर्गत ऐसा प्रावधान होना चाहिए जिसमें उन कमजोर जातियों के लोगों को योग्य बनाया जा सके ताकि समाज में कोई भी कमजोर कड़ी न रह जाए।


अर्थात कमजोर कड़ी को मजबूत करना उन्हें सरकारी नौकरियों का प्रलोभन न देकर, उनके अंदर योग्यता को उत्पन्न करना, होना चाहिए क्योंकि नौकरी का प्रलोभन वोट बैंक की राजनीति है। यह देश की उन्नति के लिए, देशवासियों के लिए घातक है। इसलिए नौकरियों की परीक्षाओं में, पदोन्नति में हर प्रकार से योग्यता के आधार पर नियुक्ति देनी चाहिए जो कि समाज और देश दोनों के लिए श्रेष्ठ कर है वहीं पर अयोग्य लोगों को योग्य बनने के लिए सुविधाएं दी जाएं। उन्हें देश और समाज हित में उत्साहित किया जाये। तभी योग्यता पर जातीय बेड़ियों से मुक्ति मिलेगी। 



Wednesday, 1 July 2020

56 इंच सीने का प्रमाण गरीबों को अन्न से भी

कोरोना काल में जहां पर संपूर्ण विश्व तालाबंदी से जूझ रहा है ऐसे में गरीब जनता कैसे जीवित रहे उसे जीने के लिए आवश्यक वस्तुएं अन्न कैसे प्राप्त हो यह प्रश्न बड़ा ही चैलेंज वाला है क्योंकि इस समय सारे रोजगार फैक्ट्रियां मंद गति में हो गए हैं तथा रोज मजदूरी कर अपना पेट पालन करने वाले लोग उनके लिए रोजगार के अवसर वर्तमान समय में स्तब्ध से हो गए है ऐसी स्थिति में उनके परिवार का भरण पोषण करना एक बहुत बड़ी चुनौती है। 
इस चुनौती को मानवीय मूल्यों पर स्वीकार करते हुए देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने 3 माह का राशन सभी गरीबों को 
निशुल्क दिए जाने की घोषणा की थी और उसे समय से पूरा भी किया परंतु देश में कोरोना के संक्रमण के बढ़ते हुए आंकड़ों के कारण स्थितियां अभी सामान्य नहीं हुई है बल्कि बिगड़ती जा रही है ऐसी स्थिति में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पुनः गरीबों को सरकारी सस्ते गल्ले की दुकान के माध्यम से आगामी 5 माह तक 5 किलो प्रति यूनिट के हिसाब से देने का संकल्प लिया है यह कार्य बहुत ही साहसिक है क्योंकि वोट लेने के लिए जनता से सभी पार्टियां सुहाने लोहा ने वादे तो कर देते हैं परंतु समय बीते वह सभी वादे हवा हवाई हो जाते हैं गरीबों को पूरे देश के गरीबों को 8 माह तक लगातार उपलब्ध कराना एक 56 इंच के सीने वाला ही व्यक्ति कर सकता है क्योंकि गरीबों से वोट तो सभी पार्टियां चाहती हैं उन्हें लाली पॉप सभी दिखाते हैं परंतु वास्तविक जिंदगी में उनके उत्थान को मूर्त रूप देना  सबके बस की बात नहीं ऐसा पिछली सरकारों ने सिद्ध किया है परंतु  मोदी जी के आज आने के बाद के लिए उनके जीवन के लिए सार्थक प्रयास भाजपा की सरकार नरेंद्र मोदी के द्वारा किया जा रहा है जो बहुत ही अद्भुत है
 मोदी जी ने जितने भी वादे किए हैं उन वादों को पूरा कर रहे हैं यह देश का बच्चा-बच्चा इस बात को हृदय से स्वीकार कर रहा है अब समझने लगा
ऊऔ रोड मेहनत कर

Sunday, 14 June 2020

सुशांत की मौत क्या कहती है

मुम्बई, रविवार। फिल्म युवा अभिनेता 34 वर्ष के सुशांत सिंह राजपूत के आत्महत्या करने पर फिल्म जगत स्तब्ध सा हो गया है बॉलीवुड में अपनी पहचान बना चुके पटना के रहने वाले सुशांत बांद्रा के एक फ्लैट की छठी मंजिल मे रहते थे। 

इस अपार्टमेंट में सुशांत के  6 वर्ष पुराने मित्र नीरज 11मई 2019 से रह रहे थे तथा अन्य स्टाफ के लोग भी उसी अपार्टमेंट में रहते थे आज सुबह 9:30 बजे सुशांत ने अपनी बहन से बात की फिर अपने मित्र महेश कृष्णा शेट्टी से बात की इसके बाद  लगभग 10:00 बजे बाहर आए और जूस लेकर अपने कमरे में चले गए 2 घंटे तक कमरे से ना निकलने तथा स्टाफ द्वारा  खाना बनाने के लिए पूछने पर उत्तर न देना दरवाजा न खोलना खुलना  मोबाइल ना उठाना आदि से आशंकित उनके स्टाफ ने में जवाब न देना पर उनके स्टाफ ने  दरवाजा खोलना चाहा  लेकिन अंदर से लॉक होने के कारण  चाबी वाले को बुला कर  दरवाजा खोला गया जहां पर  सुशांत  सिंह  एक हरे कपड़े से फांसी के फंदे  पर लटके थे। 

सूत्रों के अनुसार सुशांत  पिछले 6 माह से  डिप्रेशन में थे  जिसका की इलाज  चल रहा था  इसलिए  संबंधित डॉक्टर से  पुलिस द्वारा पूछताछ की जा रही है होनहार अभिनेता सुशांत का जीवन लॉक डाउन होने के कारण एक कमरे में अकेले सिमटकर रह गया था जबकि डिप्रेशन के मरीजों को अकेले ना रहने की  डॉक्टर की पहली सलाह होती है सुशांत सिंह  इंजीनियर बनने के लिए दिल्ली में पढ़ाई कर रहे थे  पढ़ाई को बीच में छोड़कर  मुम्बई गए जहां उन्हें नाम और पैसा  दोनों ही मिला  और उन्होंने अपनी कड़ी मेहनत  योग्यता से  फिल्मी दुनिया में  अपना  कम समय में  अपना अच्छा स्थान बना लिया था  आखिर कौन सी वजह थी  जिसके कारण  उन्होंने आत्महत्या की  यह  प्रश्न चिन्ह है  क्योंकि कैरियर संबंधी उनकी  कोई टेंशन तो नहीं थी इस घटना से  फिल्म अभिनेत्री  दिव्या भारती की  घटना की याद दिलाती है नवंबर में शादी होने वाली थी

Wednesday, 10 June 2020

ऑनलाइन पढ़ाई का सच

विश्व में वैश्विक महामारी कोरोना के जन्म लेने के बाद मानव जाति की जीवन शैली में बड़ा परिवर्तन हुआ है कोरोना के संक्रमण से बचने के लिए वर्तमान में कोई वैक्सीन या दवा आदि उपलब्ध नहीं है ऐसी स्थिति में इस बीमारी का उपाय एकमात्र समाज से परस्पर दूरी बनाकर रखना है इस कारण मनुष्य की सामाजिक गतिविधियां स्तब्ध हो गई है कोरोना का संक्रमण बच्चों, बूढ़ो और बीमार लोगों में अधिक तेजी से फैलता है इस कारण बच्चों के स्कूलों को बंद कर दिया गया है।
बच्चों के स्कूलों को बंद करने के बाद उनकी पढ़ाई कैसे हो इसका एकमात्र विकल्प ऑनलाइन पढ़ाई है इसी को देखते हुए शिक्षा जगत में नई विधा का जन्म हुआ अब बच्चों को अपने घरों में ऐप के माध्यम से स्कूल के टीचरों द्वारा कक्षाओं का संचालन हो रहा है बच्चों की ऑनलाइन क्लास में उनकी उपस्थिति से लेकर सभी विषयों की पढ़ाई सुचारू रूप से विद्यालय द्वारा चलाई जा रही है यह प्रयोग नया है इसलिए इसमें विभिन्न प्रकार की कठिनाइयां आना स्वाभाविक है।

आध्यापकों द्वारा ऑनलाइन कक्षा में पढ़ाई कराना एक चुनौती पूर्ण कार्य है जहां पर इसमें अध्यापकों को अत्यधिक श्रम करना पड़ रहा है वहीं पर बच्चे मोबाइल लेकर अपनी कक्षा को अटेंड करते हैं परंतु कुछ बच्चे ऑनलाइन कक्षा से आउट हो जाते हैं और वह मोबाइल गेम खेलने लगते हैं ऐसी स्थिति में बच्चों के घर वाले यह समझते हैं कि हमारा बच्चा ऑनलाइन क्लास से जुड़ कर पढ़ाई कर रहा है जबकि नटखट बच्चे इस अवसर को मोबाइल खेलने का अच्छा अवसर बनाकर भरपूर मोबाइल गेम खेलते हैं और ऑनलाइन हो रही पढ़ाई मे अनुपस्थित हो रहे है।

अभिभावकों को चाहिए कि वह अपने बच्चे की ऑनलाइन पढ़ाई के समय बच्चों पर ध्यान रखें कि उनका बच्चा उस समय मोबाइल पर गेम न खेलें। स्कूल द्वारा चलाई जा रही ऑनलाइन कक्षा में उपस्थित होकर पढ़ाई करें और बताए हुए होमवर्क आदि को नोट कर अपने सत्र की नियमित पढ़ाई मे लगे रहे ताकि उनका यह सत्र कोरोना के कारण बाधित ना हो।
ऑनलाइन क्लासेस चलने पर भौतिक रूप से छात्र, स्कूल का स्टाफ आदि स्कूल में उपस्थित नहीं होता है इस कारण स्कूल के रखरखाव और वहां की सुविधा आदि से संबंधित शुल्कों को छात्रों के शिक्षण शुल्क से हटा देना चाहिए ऐसा न्याय धारा का मानना है ताकि अभिभावकों पर लाॅक डाउन के बाद अतिरिक्त बोझ न पड़े तथा बच्चों की पढ़ाई का सत्र शून्य ना हो विद्यालयों को यह चाहिए कि वह शिक्षण शुल्क ले और शिक्षण शुल्क के अतिरिक्त अन्य शुल्को पर विचार करें जो शुल्क हटाए जा सकते हैं उन्हें हटा देना चाहिए।

क्योंकि विद्यालय का उद्देश्य धन कमाना नहीं अपितु देश के बच्चों को ज्ञान और संस्कार देना है इस बात का विशेष ध्यान रखना होगा।
ऑनलाइन पढ़ा रहे अध्यापकों पर अत्यधिक मात्रा में मानसिक और शारीरिक दोनों ही श्रम पड़ता हैं क्योंकि ऑनलाइन पढ़ाने की विदा का जन्म अभी कोरोना काल में ही हुआ है इस कारण अनेकों कठिनाइयां आ रही हैं फोन पर सभी छात्रों को कॉल करना उन्हें वीडियो ऐप में जोड़ने के लिए लिंक भेजना तथा ऑनलाइन क्लासेज के शेड्यूल को बनाना और उसको पढ़ाना इसी के साथ बच्चों के पाठ्यक्रम का भी ध्यान रखना और जो बच्चे उपस्थित हुए हैं उनकी उपस्थिति की सूचना विद्यालय को नियमित रूप से देना।

पढ़ाए गए पाठ्यक्रम के विषय में विद्यालय को सूचित करना ऑनलाइन कक्षा को बच्चों के लिए रोचक बनाए रखना ताकि बच्चे जुड़े रहें और पढ़ाई करें। इसके उपरांत विद्यालय द्वारा मीटिंग को ऑनलाइन अटेंड करना और अनेकों अनेक सुबह से शाम तक फोन करना कुल मिलाकर ऑनलाइन पढ़ाने वाले अध्यापकों का जीवन मोबाइल कॉलिंग ऑनलाइन बनकर रह गया है ऐसे में इनकी मेहनत को देखते हुए इन्हें अतिरिक्त पारिश्रमिक दिया जाना आपेक्षिक होगा।

परंतु इतनी अत्याधिक कठिन परिश्रम करने के बाद भी अध्यापकों को अतिरिक्त पारिश्रमिक तो दूर उनका प्रतिमाह का पारिश्रमिक यदि समय से मिल जाए तो यह बहुत बड़ी बात होगी वैसे भी प्राइवेट विद्यालयों द्वारा अध्यापकों को पारिश्रमिक सरकारी मानकों से भी कम दिया जाता है यह बात सभी को पता है इस समस्या के समाधान के लिए सरकार को आगे आना होगा नियमों को कड़ाई से पालन कराना होगा तथा इस विषय पर समय-समय पर निरीक्षण भी करना होगा ताकि देश का भविष्य जो कि आज का छात्र है उसे शिक्षा और संस्कार ठीक ढंग से मिल सके।

Tuesday, 19 May 2020

श्रमिको के पलायन से शहरवासी होंगे स्वावलंबी

 कोरोना के संक्रमण की महामारी ने विश्व को स्तब्ध होने पर विवश कर दिया क्योंकि कोरोना का संक्रमण मनुष्य मे, मनुष्य के द्वारा अन्य मनुष्यों में गुणोत्तर क्रम में फैल रहा है। इसका कोई भी अभी तक उपचार नहीं आया है इस कारण से इसका केवल बचाव एकमात्र उपाय है। बचाव का अर्थ है कि मनुष्य  दूसरे मनुष्य से न मिले उसके संपर्क में न आए तथा समाज में  एक स्थान पर लोग एकत्रित न हो।
जो लोग समुदाय में हो वह व्यक्तिगत एक निश्चित दूरी पर स्थित हो ताकि एक दूसरे के संपर्क में न आए और उनके द्वारा किसी प्रकार के संक्रमण का आदान-प्रदान न हो सके। इस प्रकार से मानव श्रृंखला मानव के द्वारा संक्रमण के फैलाओ की श्रंखला को तोड़ना ही इसका एकमात्र उपाय है भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इन सभी तथ्यों को ध्यान में रखकर  देश में जब कोरोना के संक्रमण का प्रारंभ हुआ तो समय रहते  उन्होंने देश में तालाबंदी लागू कर दी जिसके कारण संक्रमण का फैलाव मनमाना नहीं हो पाया।
पहले  तालाबंदी के चरण में साधनों को कम समय में उपलब्ध कराना बहुत बड़ी चुनौती थी जिसे मोदी जी की दूर दृष्टिता के चलते उस पर सकारात्मक पहल हो पाई। तालाबंदी की इन परिस्थितियों से उपजने वाली सभी परिस्थितियों को नियंत्रित करने के लिए विस्तार से नीतियों को, योजनाओं को और राहत कार्यों को क्रियान्वित किया गया। दूसरे चरण की  तालाबंदी के चलते जब लोग घर पर रहेंगे तभी सुरक्षित रहेंगे और कोई भी व्यक्ति भूखा न सोए इसके लिए सूखा अन्न सरकारी राशन की दुकानों द्वारा प्रति यूनिट 5 किलो की माप से निशुल्क वितरित किया जा रहा है तथा जो असहाय हैं, गरीब हैं, मजदूर हैं तथा जिनके पास भोजन की व्यवस्था नहीं है उनके लिए समाज के संभ्रांत लोगों ने, सहिष्णु लोगों ने, समाजसेवी संस्थाओं ने, भाजपा के कार्यकर्ताओं ने तथा शासन और प्रशासन के सहयोग से मानव सेवा का पूरे देश में व्यापक रूप से समर्पित पुनीत कार्य किया जा रहा है।
केंद्र सरकार ने राज्यों की सहमति से राहत कार्यों को आखरी कड़ी तक पहुंचाने का भरसक प्रयास किया है परंतु तीसरे चरण के तालाबंदी के बाद बाहर के अन्य राज्यों के आए हुए  श्रमिक मजदूर का मन अपने निजी गांव घर के लिए दृढ़ हो गया तथा उनमें ऐसा देखा गया कि यह तालाबंदी देश में पता नहीं कब तक चलेगी परदेस में पड़े हैं कब तक सहायता लेंगे  कहीं सहायता नहीं पहुंच पा रही है और जो सहायता मिल रही है तो वह कब तक मिलेगी? कुल मिलाकर कुछ अविश्वास की भावना और कब तक ऐसी स्थितियों में बिना रोजगार के  श्रमिक भाई रह सकते हैं इसलिए वे सभी अपने घर के लिए  पलायन करने लगे। कोई हजार किलोमीटर दूर कोई 500 किलोमीटर दूर तो कोई 2000 किलोमीटर दूर यह सभी  अपने घर को बिना किसी साधन के पैदल ही निकल पड़े  आज पूरे देश में श्रमिकों का पलायन बड़े-बड़े शहरों से अपने घर को आने के कारण श्रमिकों का पलायन हो रहा है यह पलायन एक दृष्टिकोण से अच्छा है क्योंकि यह जो भी श्रमिक है वह अपने गांव को छोड़कर आए हैं अर्थात गांव का पलायन देश के शहरों की ओर हुआ था। जिसके कारण देश का संतुलन बिगड़ता जा रहा था और शहरी लोगों में हरामखोरी  आलस्य बढ़ता जा रहा था तथा अत्यधिक श्रमिकों की जनसंख्या होने के कारण शहरों में गांव से आए लोगों का सम्मान कम हुआ था।
श्रमिकों का पलायन लंबे समय की तालाबंदी को देखते हुए सही है परंतु श्रमिकों को अपने घर आने के लिए उन्हें यथोचित यात्रा साधनों को उपलब्ध कराना राज्यों की प्रथम प्राथमिकता होनी चाहिए। इसी बात को ध्यान में रखते हुए उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अन्य प्रदेशों से आ रहे पैदल तथा अन्य साधनों द्वारा श्रमिक बंधुओं के लिए रोडवेज बसों को उपलब्ध करा कर उन्हें उनके गंतव्य स्थान पर पहुंचाने के लिए सहायता दी है तथा शासन प्रशासन, सामाजिक संस्थाओं और भाजपा के कार्यकर्ताओं द्वारा इन पैदल आ रहे श्रमिकों को भोजन, पानी तथा आवश्यक वस्तुएं जैसे पैरों में चप्पल गमछा आदि देकर उनकी मानवीय सहायता की जा रही है श्रमिकों के पलायन से बड़े शहरों में श्रमिक और मजदूरों की नगर मे अभाव हो जाएगी जिसके चलते शहर में रहने वाले शहरवासी अपने छोटे बड़े सब कामों को स्वयं करने के लिए बाध्य हो जाएंगे।
ऐसी स्थिति में वे स्वावलंबी होंगे और स्वाबलंबी होना मनुष्य के लिए अच्छा गुण है पलायन के बाद दशकों से जो गांव खाली हो गए थे वे अपने स्वजनों के आने पर भरे पूरे हो जाएंगे भारत का दिल गांव में बसता है इस कारण गांव और कस्बे के विकास में घर लौटे यह श्रमिक अपना अच्छा योगदान देंगे वहीं पर प्रधानमंत्री मोदी जी ने 20 लाख करोड़ का आर्थिक पैकेज सहायता बजट दिया है जिसके अंतर्गत व्यक्ति अपने घर जिले में रहकर जीवन यापन के लिए बिना ब्याज का रुपया लेकर काम प्रारंभ कर सकता है और अपनी कार्यकुशलता से देश को देसी उत्पादन में दृढ़ता और सफल बनाने में पूर्ण योगदान भी कर सकता है देश में तालाबंदी के बाद उपजने वाले भयानक परिणामों को पूर्व में ही नियंत्रित करने के लिए बेरोजगारी को दूर करने के लिए तथा देश के लोगों का रुपया देश में रहे देश के लोगों को रोजगार मिले इसके लिए स्वदेशी अपनाना ही एकमात्र उपाय है जिसके लिए मोदी जी ने पहले ही योजना लाकर देश को आने वाली आर्थिक मंदी से बचाने का एक सफल प्रयास किया है।

Wednesday, 1 January 2020

विश्व के नव वर्ष पर भविष्य मानव की बधाई

       आज भारत ही नहीं बल्कि संपूर्ण विश्व ईस्वी कैलेंडर नव वर्ष 2020 के आगमन को खुशियों से मनाने में डूबा हुआ है। विश्व में इसका सेलिब्रेशन देखकर यह प्रमाणित होता है कि अंग्रेजों ने लगभग संपूर्ण विश्व में अपना साम्राज्य स्थापित किया था जिसके प्रभाव स्वरूप उनका ईस्वी कैलेंडर संपूर्ण विश्व के चलन और प्रचलन दोनों में पूरी तरह से व्याप्त है।
      भारत में अंग्रेजों ने 190 वर्षों तक राज किया और यहां के सहिष्णु लोगों में, अंग्रेजी मानसिकता काफी अच्छी तरीके से अपना स्थान बना चुकी है। आज यहां के बच्चों में ईस्वी नव वर्ष का जो उत्साह देखा जा रहा है वह बहुत ही रोचक है जबकि भारतीय वर्ष बड़ा ही पुरातन है, जिसकी रचना राजा विक्रमादित्य ने संवत्सर के रूप मे श्रृष्टि श्रृजन दिवस से प्रारम्भ की थी। विक्रम संवत्सर 2076 वर्तमान में चल रहा है जो कि ईस्वी वर्ष से लगभग 56 वर्ष पहले का है अर्थात विक्रम संवत्सर विश्व के ईस्वी कैलेंडर से 56 वर्ष पूर्व में शुरू हुआ था अर्थात भारत विश्व में इस गणना के आधार पर 56 वर्ष भविष्य में चल रहा है और भविष्य का हर मानव भूतकाल के यानी वर्ष 2020 के लोगों को कैलेंडर के नववर्ष की बधाई दे रहा है जो कि एक आश्चर्यचकित घटना है।
      यह घटना हर वर्ष देखने को मिलती है अधिकांश सहिष्णु  भारतीय लोगों को, अपने वर्ष का ज्ञान नहीं है अपनी पुरातन संस्कृति से भी वह अनभिज्ञ होते जा रहे हैं इसका सबसे बड़ा कारण यहां पर इस्लाम ने अपना साम्राज्य स्थापित कर रखा था तथा मुगलों ने आक्रमण कर अपना आधिपत्य जमा लिया था। यहां की पुरातन संस्कृति को नष्ट किया गया। यहां के प्राचीन मंदिर नालंदा गुरुकुल आदि सब तहस-नहस कर विध्वंस कर दिए गए थे जिसके कारण यहां का ज्ञान, विज्ञान, गणित, साहित्य आदि को बड़े ही हिंसक तरीके से नष्ट किया गया ताकि यहां की पहचान और संस्कृत खत्म हो जाए।
        यहाँ के सहिष्णु सनातन भारतियों को धर्म परिवर्तन करा कर हिंदू रीति रिवाजों को आडंबर की संज्ञा देकर उन्हें नीचा दिखा कर अपमानित कर जुर्म आदि कई तरीकों से नष्ट करने का प्रयास किया गया यह अत्याचार 1200 वर्षो तक इस्लाम ने अलग अलग तरीके से किए और अपने धर्म को कट्टरता से लागू किया और खूब फूलता फलता रहा। इसके बाद जब अंग्रेज भारत में आए ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना की और धीरे-धीरे उन्होंने यहां के छोटे-छोटे राजाओं पर अपना प्रभुत्व जमा लिया। फिर अंग्रेजों ने यहां की जनता पर लगभग 200 वर्ष राज्य किया। धीरे धीरे रही बच्ची यहां की  जो संस्कृति थी वह भी मिश्रित संस्कृति होती चली गई। अर्थात हिन्दू और इस्लाम दोनों धर्मो के प्रभाव से मिली जुली संस्कृति बन गई थी और उस पर अब अंग्रेजो का चाबुक चलने लगा था।
         ईसाइयत ने अपना प्रभाव डालना शुरू कर दिया धीरे-धीरे अब उसमें भी यहां की जनता मिलती गई और यहां की संस्कृति पर क्रिस्चियन इस्लाम और हिंदू इनका प्रभाव पड़ा बाद के अत्याचार अधिक होने के कारण यहां विद्रोह होना शुरू हो गया। फिर धीरे धीरे विद्रोह की आग बढती गयी जिसके फलस्वरूप काफी बलिदान के बाद देश आजाद हुआ परंतु यहां की खोई हुई संस्कृति खोया हुआ विशुद्ध धर्म देश उसे पुनः स्थापित नहीं किया जा सका। इसका सबसे बड़ा उदाहरण है आज यहां के जो बच्चे हैं वह ईस्वी के कैलेंडर को ही जानते हैं उन्हें भारतीय वर्ष के विषय में जानकारी ना के बराबर है जबकि भारतीय वर्ष प्रतिवर्ष अपने एक अलग नाम से होता है जैसे कि आगामी विक्रम संवत 2077 जो कि चैत्र नवरात्र से प्रारंभ होगा उसका नाम है प्रमादी नाम संवत्सर अर्थात इस वर्ष का नाम प्रमादी है वर्ष के नाम के अनुसार  वर्ष का फल भी होता है। यह भी एक बड़ी विशेषता है। जबकि ऐसी विशेषता किसी अन्य कैलेंडर वर्ष की गणना में नहीं है।
       हमारे विक्रम संवत वर्ष का पूर्ण स्वरूप वैज्ञानिक ज्योतिष और खगोली गणित पर आधारित है इसमें नक्षत्र घड़ी ग्रहण सूर्योदय सूर्यास्त चंद्रोदय चंद्रमा की स्थितियां चंद्रमा 15 दिन तक घटते घटते अदृश्य हो जाता है उस दिन अमावस हो जाती है और उसके बाद फिर प्रतिदिन एक-एक दिन बढ़ते बढ़ते 15 दिन बाद पूरा चंद्रमा दिखता है उस दिन पूर्णिमा हो जाती है अर्थात चंद्रमा के इस घटते और बढ़ते क्रम मे घटते क्रम को कृष्ण पक्ष और बढ़ते क्रम को शुक्ल पक्ष कहते है। इसे दो पखवाड़े़े में बांटा गया है अर्थात कृष्ण पक्ष 15 दिन का शुक्ल पक्ष 15 दिन का दोनों पखवाड़े़े को मिलाकर 1 माह होता है अर्थात चंद्रमा की इस कला को पूर्णिमा से अमावस और अमावस से फिर पूर्णिमा इस पर आधारित है अपना वर्ष
जोकि पूर्ण खगोलीय गणित पर आधारित है।
          हमारे हिंदू नव वर्ष विक्रम संवत मे यही नहीं इसके अतिरिक्त इसमे 27 नक्षत्र 12 राशियां होती हैं इनकी भी इसमें गणना की गई है इसका ज्ञान रखने वाला व्यक्ति भविष्य में होने वाली घटनाओं को भी गणित के आधार पर बड़ी सरलता से खगोली ज्ञात तथा परिवर्तन आदि को जान सकता है परंतु बड़े दुख की बात है कि इतना अच्छा ज्ञान हमारे भारतीय बच्चों में नहीं दिया जा रहा है वह केवल ईस्वी कैलेंडर को ही समझ पा रहे हैं एक बात और वर्ष जब बदलता है तो उस बदलने का कारण भी होना चाहिए अर्थात सृष्टि के श्रृजन की रचना कब हुई किस दिन से किस घड़ी से सृष्टि का निर्माण शुरू हुआ वह पल वह घड़ी वह दिन जिस पर वर्ष की गणना होनी चाहिए जो कि विक्रम संवत में इस बात का ध्यान रखा गया है चैत्र नवरात्र के प्रारंभ में प्रकृति को आप जब देखेंगे तो प्रकृति की उत्पत्ति अंकुरित होते पौधे बदलता सुगंधित मौसम अपने आप में कुछ कहता है जबकि ईस्वी सन कैलेंडर के बदलने पर ना ही कोई मौसम बदल रहा है ना ही सत्र बदल रहा है और ना ही यह सृष्टि के सृजन दिवस का समय है अर्थात प्राकृतिक गणना के आधार पर इसमें कोई कारण नहीं समझ में आ रहा है जबकि भारतीय विक्रम संवत में यह विशेषता है और आज हम भारतीयों को अपनी संस्कृति धरोहर को समझना चाहिए और अपने बच्चों को इस ज्ञान से भी अवगत कराना चाहिए ताकि वह इसका लाभ उठा सकें। और भारत को पुनः विश्वगुरू बनाने मे सहायक सिद्ध हो ।https://nyaydhara.page/article/vishv-ke-nav-varsh-par-bhavishy-maanav-kee-badhaee/3G8_fM.html