Artistic Talent

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Wednesday, 28 April 2021

मृत्यु का तांडव

https://www.nyaydhara.page/2021/04/blog-post_28.html

जो वर्तमान समय में संपूर्ण विश्व की मानव जाति के ऊपर एक बहुत बड़ी विपदा चल रही है ऐसे में मानव का जीवन अपार संकट से घिरा हुआ है लोग डरे हुए हैं हतोत्साहित हैं और अपनों को खोने का डर तो है ही परंतु उससे कहीं अधिक स्वयं की सुरक्षा को लेकर मन व्यथित है। 

प्रकृति का दूसरा नाम संतुलन है क्योंकि प्रकृति का यदि हम अध्ययन करते हैं तो हम पाएंगे की प्रकृति में जो भी हमें दिख रहा है उस को संतुलित करने का एक चक्र बना हुआ है। हर जीव बनस्पति एक दूसरे पर आधारित है जैसे पेड़ों को हम देखें तो वह दिन में ऑक्सीजन देते हैं और रात को कार्बन डाइऑक्साइड अर्थात ऑक्सीजन और कार्बन डाइऑक्साइड का प्रकृति में संतुलन स्थापित हो रहा है सूर्य का पूर्व से निकलना शाम को पश्चिम दिशा में अस्त होना ऋतुओं का समय से आना  और जाता आदि सभी का एक क्रमबद्ध सुसज्जित संचालन होना यह सब प्रमाणित करता हैं कि इन सब को संचालित करने वाली कोई शक्ति तो है अब हम अपने जीवन  पर ही देखें तो पाएंगे कि जीवन और मृत्यु का भी चक्र प्रकृति के द्वारा संचालित हो रहा है। 

विज्ञान, अध्यात्म और प्रकृति के बीच में हमारा जीवन झूल रहा है एक तरफ विज्ञान ने बहुत ही उन्नत की है और वह विपरीत परिस्थितियों में भी अधिकांशतः जीवन बचाने में सफल रहती है परंतु मृत्यु पर सफलता नहीं मिल पाई है कहने का तात्पर्य है कि हमने विज्ञान की खोजों से अकाल मृत्यु से अकाल मृत्यु तक बहुत उन्नत की है परंतु मृत्यु का उपचार नहीं ढूंढ पाए हैं। सनातन धर्म के वेदों पुराणों में भी अकाल मृत्यु के उपचार  विभिन्न प्रकार से बताए गए हैं परंतु अमरत्व को नकारा गया है। मनुष्य का शरीर नाशवान है हाड़ मांस का बना शरीर अमर नहीं हो सकता इसीलिए इस लोक का नाम मृत्युलोक है नाशवान शरीर का सबसे बड़ा कारण है प्रकृति का संतुलन। 

कोविड-19 नामक रोग कैसे सृष्टि में आया किस नकारात्मक सोच के वैज्ञानिक की उत्पत्ति का फल है जिसे आज पूरी मानव जाति भोग रही है। मानव जाति के जीवन को सहज में समाप्त करने का चक्र प्रकृति के वातावरण में व्याप्त हो गया है। इस बीमारी को प्रकृति की विनाश लीला कहना उचित होगा क्योंकि प्रकृति संतुलन करती है और मानव जाति की अपार जनसंख्या अनियंत्रित हो रही है जिसका संतुलन प्रकृति अपने ढंग से करने लगी है। हमारा मानना है कि हम सभी प्रकृति के अधीन हैं और इस प्रकृति ने जनसंख्या नियंत्रण करने की ठान ली है। भारत सरकार जनसंख्या नियंत्रण पर कानून लाए या न लाए प्रकृत ने तो इस पर काम आरंभ भी कर दिया है। 

इस बीमारी के प्रथम चरण में लॉक डाउन के कारण अधिकांश लोग सुरक्षित हो गए थे परंतु कोरोना के द्वितीय चरण का रूप अपनी उग्रता में आ गया है और वातावरण में व्याप्त है इसके संक्रमण की तीव्रता इतनी अधिक है कि 3 से 4 दिन में मानव शरीर के फेफड़े अपना कार्य करना बंद कर देते हैं और ऑक्सीजन की कमी के कारण दम घुट कर मौत हो रही है विज्ञान ने कितनी भी उन्नति कर ली पर ऐसी विषम परिस्थितियों को नियंत्रित करने के लिए समय चाहिए जबकि यह बीमारी के उग्र रूप ने समय सीमा को अल्प कर दिया है चारों तरफ हम और आपके सम्पर्क, जान-पहचान में आने वाले उन लोगों के मरने की सूचना से हम सभी दुखी हैं।

मौत प्रत्यक्ष नहीं आती वह कोई कारण लेकर ही आती है आज जो मृत्यु दर बढ़ती जा रही है उसमें कई कारण सामने आ रहे हैं जैसे कि अचानक अत्यधिक लोगों का एक साथ कोविड-19 से संक्रमित होना और उसी अनुपात में उपचार हेतु हॉस्पिटलों में संसाधन का न होना, फेफड़े के संक्रमण के लिए सभी को ऑक्सीजन की आपूर्ति समय से न मिल पाना, कॉविड के प्रोटोकॉल की कठिनता का गलत नियत के लोगों द्वारा दुरुपयोग, जीवन रक्षक दवाइयों को 4 से 10 गुना महंगा उपलब्ध होना, मृत्यु दर को गुणोत्तर बढ़ा रही है। वर्तमान समय में मनुष्यों की मानवता वाली सोच दिन पर दिन घटते जाना, आर्थिक युग में जीवन से अधिक महत्व धन को देना आदि ही मृत्यु के तांडव को आमंत्रित करता है।

Wednesday, 27 January 2021

जन आंदोलन का भ्रम जाल

 जनता के लिए प्रजातंत्र श्रेष्ठ जीवन यापन की सामाजिक विधा है जो तानाशाही के विरुद्ध स्वच्छंद जीने के अधिकार को देती है। सामाजिक समानता और समान न्याय के अधिकार को आम जनो को मौलिक अधिकार के रूप में देता है। भारत एक प्रजातंत्र देश है यहां पर सभी धर्म के अनुयाई रहते हैं तथा सभी को समान अधिकार प्राप्त हैं जबकि एक धर्म ने अपना हिस्सा धार्मिक आधार पर ले लिया है फिर भी उसे भी उतना ही अधिकार आज भी प्राप्त है जितना अन्य धर्म को। इसीलिए हिस्सा पाए धर्म की अपेक्षा अन्य धर्म के अधिकारों को कम करने जैसा ही है इस कारण भारत को धर्मशाला भी कहा जा सकता है इसीलिए यहां देशद्रोही और गद्दारों को फलने फूलने का बहुत ही अच्छा अवसर प्राप्त होता है आज जो भारत के 72 वें संविधान दिवस पर घटना हुई है यह घटना इन्हीं बातों का प्रमाण देती है। 

किसान बिल पर आंदोलन करना संविधान में दिए हुए अधिकारों के अंतर्गत है यदि भारत सरकार कोई भी नया कानून लागू करती है तो उसे संसद के दोनों सदनों में बहुमत होने के बाद ही पारित किया जाता है अर्थात भारतवर्ष की जनता का प्रतिनिधित्व करते राज्यसभा और लोकसभा के सांसदों द्वारा ही पारित किया जाता है। राष्ट्रपति जी की संस्तुति के बाद कानून की अधिसूचना जारी होती है यदि इन कानूनों में फिर भी जनता को आपत्ति होती है तो वह अपनी बात रखने के लिए अपनी मांगों को पूरा कराने के लिए आंदोलन, वार्ता, प्रदर्शन, अनशन आदि का सहारा लेते हैं इसलिए आंदोलन करना, प्रदर्शन करना गलत नहीं है परंतु आंदोलन की आड़ में राष्ट्रद्रोह करना, जनता को क्षति पहुंचाना, राष्ट्रीय संपत्ति का नुकसान करना, तोड़फोड़ करना, उग्रता, आगजनी करना, दंगा फैलाना, पुलिस बल को चुनौती देकर, मारने का प्रयास करना और राष्ट्रीय सम्मान स्वरूप लाल किले में तिरंगे झंडे को हटाकर अन्य झंडा लगाना, भारत सरकार को और भारत की संवैधानिक चुनी गई सरकार को, उखाड़ फेंकने जैसा है। 

पश्चिमी बंगाल के चुनाव के पूर्व ऐसे आंदोलन की आड़ में उग्रता इतनी की गई कि सरकार आंदोलनकारियों की उग्रता को नियंत्रित करने के लिए गोली चलाने पर मजबूर हो जाए और यदि मोदी सरकार इन उग्र आंदोलनकारियों पर गोलियां चलवा देते अथवा पुलिस प्रशासन द्वारा गोली चलाई जाति तो सभी विपक्षी पार्टियां मिलकर पुनः मोदी सरकार को बदनाम करते और लोकतंत्र की दुहाई देते ताकि पश्चिमी बंगाल में होने वाले आगामी चुनाव पर इसका लाभ उठा सकें और वहां पर भाजपा सरकार को सत्ता में आने से रोकने में सफल हो जाते। 

शाहीन बाग का आंदोलन भी दिल्ली राज्य के चुनाव के पूर्व ही आयोजित किया गया था अर्थात दिल्ली चुनाव में जीत के लिए राजनीतिक पार्टियों द्वारा प्रायोजित आंदोलन अब देश में हो रहे हैं और इन आंदोलन के पीछे अराजक तत्वों को सक्रिय किया जाता है ताकि देश की प्रभुता, अखंडता और एकता को तोड़ा जाए तथा इसकी आड़ में भारतीय जनता में भ्रम उत्पन्न हो और वह निर्णय न ले सके कि सही क्या है और गलत क्या कुल मिलाकर देश में देश की जनता को भ्रमित करने की नयी विधि इस प्रकार के आंदोलन हैं। शाहीन बाग़ के आंदोलन की आड़ में दिल्ली में दंगा हुआ आईबी का अधिकारी भी मारा गया और देश को विश्व समुदाय में बदनाम करने का षड्यंत्र भी सामने आया। 

उसी प्रकार किसानों की ट्रैक्टर रैली ने भी एक बार यह सिद्ध कर दिया कि आंदोलन किसानों का नहीं अपितु इस आंदोलन की फंडिंग विदेशों से हो रही है तथा देश को तोड़ने के लिए दंगाइयों को इसमें सम्मिलित किया गया। इतना बड़ा आंदोलन देश के अंदर और वह भी देश की राजधानी दिल्ली में करना बिना किसी राजनैतिक सहयोग के संभव नहीं है इसलिए जो राजनीतिक पार्टी सत्ता से विरत बैठी हुई हैं उनका ऐसी अराजक रैलियों में योगदान होना संभावित है इन आंदोलनों को ठेका आंदोलन भी कह सकते हैं जिनका काम है देश की जनता को भ्रमित करना और देश की एकता और अखंडता को चोट पहुंचाना तथा जनता द्वारा चुनी गई संवैधानिक सरकार को उखाड़ फेंकना है। 

जबकि दिल्ली में ट्रैक्टर रैली के कुकृत्य ने देश को शर्मिंदा किया है। भारत के उन सभी बलिदान हुए देशभक्तों का अपमान किया है जिन्होंने देश की स्वाधीनता के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया। वास्तव में किसान की आड़ में यह खालिस्तानी और उग्रवादी लोग थे जिन्होंने यहां के किसान नेताओं के सहयोग से दिल्ली की सड़कों पर तांडव मचाया और लाल किले में खालिस्तानी झंडा फहराया इस घटना के पीछे जनता का मानना है कि राजनैतिक सहयोग निश्चित रूप से रहा है और सबसे ध्यान देने वाली बात यह है कि इस रैली में आए हुए सभी ट्रैक्टर नए थे और उनमें नंबर प्लेट नहीं लगी थी।

अर्थात बिना नंबर प्लेट के हजारों की संख्या में आए हुए नए ट्रैक्टर कहीं ना कहीं से तो आए हैं और जिसने भी यह ट्रैक्टर रैली के लिए दिया है वह भी इस साजिश में बराबर का हिस्सेदार है इसलिए भारत सरकार को चाहिए कि वह ऐसे दंगाइयों को, आंदोलन की आड़ में दंगा करने वालों पर राष्ट्रद्रोह लगाकर राष्ट्र में हुए नुकसान की भरपाई 10 गुना तक इन से अधिक वसूल की जाए ताकि आने वाले दिनों में इस प्रकार के उग्र आंदोलन की आड़ में दंगे न हो जबकि इस उग्रता में पुलिस के 100 से अधिक जवान घायल हुए हैं। यह पुलिस वाले भी भारत के नागरिक हैं और इन्हें न्याय कैसे मिले इस पर भी अहम सब को विचार करना चाहिए। 


Sunday, 29 November 2020

पंजाब के ही किसान संघर्ष पर क्यों

देश की समृद्धि के लिए निरंतर कार्य कर रही मोदी सरकार विभिन्न पहलुओं पर अध्ययन करते हुए नई नीतियों के माध्यम से पहल कर रही है। देश की आजादी के बाद 70 वर्ष से अधिक बीत जाने के बाद भी बहुत ऐसे पहलू हैं जिन पर पिछली सरकारों का ध्यान नहीं पहुंच पाया अथवा यह समझा जाए की इन पहलुओं पर काम नहीं किया गया। 

भारत एक कृषि प्रधान देश है इसलिए भारत की उन्नति में किसानों का सर्वाधिक योगदान आवश्यक है। हमारे देश के किसान से देश, समाज और संस्कृति जीवंत है। भारत का किसान भारत की आत्मा है और वह अपने कठिन परिश्रम से पूरे देश के लिए अन्नू उगाता है यूं कहें कि भारत में कृषि से संबंधित अत्याधुनिक उपकरणों का आज भी अभाव है तथा किसानों के उप जाए हुए अन्न की दलाली करने वाले बिचौलिए देश में मालामाल है जबकि अन्नू उपजाने वाले किसान को उसके परिश्रम का उचित मूल्य नहीं मिल पाता है खेती में लागत अधिक लगने के कारण अधिकांश किसानों को जीवन यापन करने में काफी कठिनाइयां आ रही है इसके चलते कांग्रेस के शासनकाल में महाराष्ट्र के कई किसानों ने आत्महत्या तक की थी। 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश के अन्नदाताओं की समस्याओं को जड़ से समाप्त करने के लिए बिचौलिए तथा अन्न को खरीदने वालों को लेकर नई नीतियों को बनाया है ताकि किसानों को उनके श्रम का उचित मूल्य निश्चित समय में दिलाया जा सके। वर्तमान समय में प्रधानमंत्री मोदी ने अन्नदाताओं को सम्मान निधि उनके खातों में सीधे देकर एक बहुत ही अच्छा कार्य किया है जिसके कारण वास्तविक गरीब किसानों के अंदर मोदी सरकार की नीतियों को लेकर उत्साह है। 

नई किसान नीति के अंतर्गत देश के अन्नदाताओं को उनके अन्न के लिए भुगतान 3 दिन के अंदर किया जाना निश्चित किया गया है। यदि किसी कारणवश किसानों को उनके अन्न के भुगतान की राशि समय से नहीं मिल पाती है तो ऐसी स्थिति में जिले के एसडीएम कार्यालय में शिकायत करने पर एक माह के अंदर अधिकारी द्वारा निश्चित रूप से भुगतान कराना अनिवार्य होगा। 

वर्तमान समय में पंजाब और हरियाणा के किसानों द्वारा इस नीति का विरोध करना यह बताता है कि पंजाब और हरियाणा के ही किसान परेशान हैं अथवा सरकार द्वारा लगाई गई किसान की इस नीति से केवल पंजाब और हरियाणा के किसानों को घाटा हो रहा है अथवा इसका एक और भी कारण है पंजाब में कांग्रेस शासन है और पंजाब का किसान समृद्ध एवं शक्तिशाली है। इस संघर्ष में राजनैतिक रंग भी नजर आ रहा है। 

यदि किसानों को इस नई नीति से असंतोष है तो ऐसी स्थिति में उन्हें अपनी मांगों को केंद्र सरकार के समक्ष रखने का पूरा अधिकार है। यदि किसानों की सही मांगों को नहीं माना जाता है तो ऐसी स्थिति में धरना, प्रदर्शन, संघर्ष आदि का सहारा लेना चाहिए। अपनी आवाज को संसद में अपने क्षेत्रीय सांसदों द्वारा उठाया जाना चाहिए ऐसा करने से हम अपने देश के नागरिक होने का सम्मान तो पाते ही हैं साथ में अपनी बात कहने का उचित माध्यम भी बन सकते हैं। 







Friday, 17 July 2020

योग्यता पर जातीय बेड़िया क्यों?

जब देश के युवाओं में योग्यता हो, प्रतिभा हो और उस प्रतिभा के आधार पर प्रतिभावान युवाओं को देश सेवा करने के लिए उपयुक्त पद देकर सेवाएं ली जाएं तो वह समाज, वह देश उन्नति करता है क्योंकि योग्य व्यक्ति ही अपने पद का, अपने उत्तरदायित्व का सही प्रकार से निर्वहन कर सकता है। 


जैसे कि उदाहरण के लिए कोई दो विद्यार्थी डॉक्टरी की पढ़ाई (सीपीएमटी) के लिए प्रवेश परीक्षा में पहला 60% अंक प्राप्त करता हैं और दूसरा 5 परसेंट अंक प्राप्त करता है क्योंकि आरक्षित सीट होने के कारण आरक्षण जाति का 5% अंक पाने वाला बच्चा सीपीएमटी में डॉक्टर बनने के लिए चुन लिया जाता है वहीं पर सामान्य वर्ग का 60% अंक पाने वाला विद्यार्थी योग्य होते हुए भी उसे अवसर नहीं दिया जाता है। ऐसी स्थिति में 5 परसेंट प्राप्त करने वाला छात्र डॉक्टरी की पढ़ाई में कहां तक सफल होगा यह आप लोग भली प्रकार से जानते हैं। ऐसे डॉ आरक्षण का लाभ उठाकर सरकारी विभाग में नौकरी पा जाते हैं और कोटे से बने अयोग्य डॉक्टर जब जनता को अपनी सेवाएं देंगे तो निश्चित रूप से जनता के साथ अन्याय होता है। 


इसी प्रकार अन्य विभागों में जब योग्य छात्रों को अवसर नहीं दिया जाएगा उस स्थिति में अयोग्य व्यक्ति उन पदों पर अपनी अक्षमताओं के अनुसार कार्य करेंगे। ऐसी स्थिति में वह बच्चे निश्चित रूप से उस पद के उत्तरदायित्व को गंभीरता और सत्यता के साथ नहीं निभा पाएंगे। इस कारण पदों के उत्तरदायित्व से संबंधित कार्यों में अनेक बाधाएं उत्पन्न होंगी जोकि देश के विकास और उन्नति को दीमक की तरह से चाट जाएंगी और देश प्रगति की हर कड़ी कमजोर हो जाएगी उसके दुष्परिणाम जनता को भोगने पड़ेंगे। धीरे धीरे यह समस्या देश को गुलामी की ओर ले जाएगी वहीं दूसरी तरफ जातिगत आरक्षण के कारण सामान्य एवं आरक्षित वर्ग में कटुता बढ़ेगी क्योंकि एक तरफ योग्य व्यक्ति को सरकार की नीतियों के चलते रोजगार नहीं मिलेगा वहीं पर अयोग्य व्यक्ति रोजगार पाकर उसका दुरुपयोग करेंगे। उन्हें पता है कि हमें तो नौकरी मिल ही जाएगी क्योंकि आरक्षण हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है ऐसी भावना जनता में जातीय संघर्ष को जन्म देगी ।


इस प्रकार योग्यता को जातीय बेेड़िया पहनाना कहां तक उचित है यह गंभीर विषय है। इस पर विचार कर इस समस्या के समाधान को शीघ्र लाना होगा। आरक्षण देने का मूल उद्देश्य क्या है? इस विषय पर समीक्षा करना वर्तमान सरकार को आवश्यक है। भारतीय समाज को समानता के साथ अधिकार देने के लिए आरक्षण का प्रावधान किया गया था। आरक्षण का उद्देश्य अयोग्य को नौकरी देना नहीं है आरक्षण का मूल उद्देश्य उन सभी कमजोर जातियों के लोगों को समाज में बराबर सहभागिता करते हुए योग्य बनाना है अर्थात आरक्षण के अंतर्गत ऐसा प्रावधान होना चाहिए जिसमें उन कमजोर जातियों के लोगों को योग्य बनाया जा सके ताकि समाज में कोई भी कमजोर कड़ी न रह जाए।


अर्थात कमजोर कड़ी को मजबूत करना उन्हें सरकारी नौकरियों का प्रलोभन न देकर, उनके अंदर योग्यता को उत्पन्न करना, होना चाहिए क्योंकि नौकरी का प्रलोभन वोट बैंक की राजनीति है। यह देश की उन्नति के लिए, देशवासियों के लिए घातक है। इसलिए नौकरियों की परीक्षाओं में, पदोन्नति में हर प्रकार से योग्यता के आधार पर नियुक्ति देनी चाहिए जो कि समाज और देश दोनों के लिए श्रेष्ठ कर है वहीं पर अयोग्य लोगों को योग्य बनने के लिए सुविधाएं दी जाएं। उन्हें देश और समाज हित में उत्साहित किया जाये। तभी योग्यता पर जातीय बेड़ियों से मुक्ति मिलेगी। 



Wednesday, 1 July 2020

56 इंच सीने का प्रमाण गरीबों को अन्न से भी

कोरोना काल में जहां पर संपूर्ण विश्व तालाबंदी से जूझ रहा है ऐसे में गरीब जनता कैसे जीवित रहे उसे जीने के लिए आवश्यक वस्तुएं अन्न कैसे प्राप्त हो यह प्रश्न बड़ा ही चैलेंज वाला है क्योंकि इस समय सारे रोजगार फैक्ट्रियां मंद गति में हो गए हैं तथा रोज मजदूरी कर अपना पेट पालन करने वाले लोग उनके लिए रोजगार के अवसर वर्तमान समय में स्तब्ध से हो गए है ऐसी स्थिति में उनके परिवार का भरण पोषण करना एक बहुत बड़ी चुनौती है। 
इस चुनौती को मानवीय मूल्यों पर स्वीकार करते हुए देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने 3 माह का राशन सभी गरीबों को 
निशुल्क दिए जाने की घोषणा की थी और उसे समय से पूरा भी किया परंतु देश में कोरोना के संक्रमण के बढ़ते हुए आंकड़ों के कारण स्थितियां अभी सामान्य नहीं हुई है बल्कि बिगड़ती जा रही है ऐसी स्थिति में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पुनः गरीबों को सरकारी सस्ते गल्ले की दुकान के माध्यम से आगामी 5 माह तक 5 किलो प्रति यूनिट के हिसाब से देने का संकल्प लिया है यह कार्य बहुत ही साहसिक है क्योंकि वोट लेने के लिए जनता से सभी पार्टियां सुहाने लोहा ने वादे तो कर देते हैं परंतु समय बीते वह सभी वादे हवा हवाई हो जाते हैं गरीबों को पूरे देश के गरीबों को 8 माह तक लगातार उपलब्ध कराना एक 56 इंच के सीने वाला ही व्यक्ति कर सकता है क्योंकि गरीबों से वोट तो सभी पार्टियां चाहती हैं उन्हें लाली पॉप सभी दिखाते हैं परंतु वास्तविक जिंदगी में उनके उत्थान को मूर्त रूप देना  सबके बस की बात नहीं ऐसा पिछली सरकारों ने सिद्ध किया है परंतु  मोदी जी के आज आने के बाद के लिए उनके जीवन के लिए सार्थक प्रयास भाजपा की सरकार नरेंद्र मोदी के द्वारा किया जा रहा है जो बहुत ही अद्भुत है
 मोदी जी ने जितने भी वादे किए हैं उन वादों को पूरा कर रहे हैं यह देश का बच्चा-बच्चा इस बात को हृदय से स्वीकार कर रहा है अब समझने लगा
ऊऔ रोड मेहनत कर

Sunday, 14 June 2020

सुशांत की मौत क्या कहती है

मुम्बई, रविवार। फिल्म युवा अभिनेता 34 वर्ष के सुशांत सिंह राजपूत के आत्महत्या करने पर फिल्म जगत स्तब्ध सा हो गया है बॉलीवुड में अपनी पहचान बना चुके पटना के रहने वाले सुशांत बांद्रा के एक फ्लैट की छठी मंजिल मे रहते थे। 

इस अपार्टमेंट में सुशांत के  6 वर्ष पुराने मित्र नीरज 11मई 2019 से रह रहे थे तथा अन्य स्टाफ के लोग भी उसी अपार्टमेंट में रहते थे आज सुबह 9:30 बजे सुशांत ने अपनी बहन से बात की फिर अपने मित्र महेश कृष्णा शेट्टी से बात की इसके बाद  लगभग 10:00 बजे बाहर आए और जूस लेकर अपने कमरे में चले गए 2 घंटे तक कमरे से ना निकलने तथा स्टाफ द्वारा  खाना बनाने के लिए पूछने पर उत्तर न देना दरवाजा न खोलना खुलना  मोबाइल ना उठाना आदि से आशंकित उनके स्टाफ ने में जवाब न देना पर उनके स्टाफ ने  दरवाजा खोलना चाहा  लेकिन अंदर से लॉक होने के कारण  चाबी वाले को बुला कर  दरवाजा खोला गया जहां पर  सुशांत  सिंह  एक हरे कपड़े से फांसी के फंदे  पर लटके थे। 

सूत्रों के अनुसार सुशांत  पिछले 6 माह से  डिप्रेशन में थे  जिसका की इलाज  चल रहा था  इसलिए  संबंधित डॉक्टर से  पुलिस द्वारा पूछताछ की जा रही है होनहार अभिनेता सुशांत का जीवन लॉक डाउन होने के कारण एक कमरे में अकेले सिमटकर रह गया था जबकि डिप्रेशन के मरीजों को अकेले ना रहने की  डॉक्टर की पहली सलाह होती है सुशांत सिंह  इंजीनियर बनने के लिए दिल्ली में पढ़ाई कर रहे थे  पढ़ाई को बीच में छोड़कर  मुम्बई गए जहां उन्हें नाम और पैसा  दोनों ही मिला  और उन्होंने अपनी कड़ी मेहनत  योग्यता से  फिल्मी दुनिया में  अपना  कम समय में  अपना अच्छा स्थान बना लिया था  आखिर कौन सी वजह थी  जिसके कारण  उन्होंने आत्महत्या की  यह  प्रश्न चिन्ह है  क्योंकि कैरियर संबंधी उनकी  कोई टेंशन तो नहीं थी इस घटना से  फिल्म अभिनेत्री  दिव्या भारती की  घटना की याद दिलाती है नवंबर में शादी होने वाली थी

Wednesday, 10 June 2020

ऑनलाइन पढ़ाई का सच

विश्व में वैश्विक महामारी कोरोना के जन्म लेने के बाद मानव जाति की जीवन शैली में बड़ा परिवर्तन हुआ है कोरोना के संक्रमण से बचने के लिए वर्तमान में कोई वैक्सीन या दवा आदि उपलब्ध नहीं है ऐसी स्थिति में इस बीमारी का उपाय एकमात्र समाज से परस्पर दूरी बनाकर रखना है इस कारण मनुष्य की सामाजिक गतिविधियां स्तब्ध हो गई है कोरोना का संक्रमण बच्चों, बूढ़ो और बीमार लोगों में अधिक तेजी से फैलता है इस कारण बच्चों के स्कूलों को बंद कर दिया गया है।
बच्चों के स्कूलों को बंद करने के बाद उनकी पढ़ाई कैसे हो इसका एकमात्र विकल्प ऑनलाइन पढ़ाई है इसी को देखते हुए शिक्षा जगत में नई विधा का जन्म हुआ अब बच्चों को अपने घरों में ऐप के माध्यम से स्कूल के टीचरों द्वारा कक्षाओं का संचालन हो रहा है बच्चों की ऑनलाइन क्लास में उनकी उपस्थिति से लेकर सभी विषयों की पढ़ाई सुचारू रूप से विद्यालय द्वारा चलाई जा रही है यह प्रयोग नया है इसलिए इसमें विभिन्न प्रकार की कठिनाइयां आना स्वाभाविक है।

आध्यापकों द्वारा ऑनलाइन कक्षा में पढ़ाई कराना एक चुनौती पूर्ण कार्य है जहां पर इसमें अध्यापकों को अत्यधिक श्रम करना पड़ रहा है वहीं पर बच्चे मोबाइल लेकर अपनी कक्षा को अटेंड करते हैं परंतु कुछ बच्चे ऑनलाइन कक्षा से आउट हो जाते हैं और वह मोबाइल गेम खेलने लगते हैं ऐसी स्थिति में बच्चों के घर वाले यह समझते हैं कि हमारा बच्चा ऑनलाइन क्लास से जुड़ कर पढ़ाई कर रहा है जबकि नटखट बच्चे इस अवसर को मोबाइल खेलने का अच्छा अवसर बनाकर भरपूर मोबाइल गेम खेलते हैं और ऑनलाइन हो रही पढ़ाई मे अनुपस्थित हो रहे है।

अभिभावकों को चाहिए कि वह अपने बच्चे की ऑनलाइन पढ़ाई के समय बच्चों पर ध्यान रखें कि उनका बच्चा उस समय मोबाइल पर गेम न खेलें। स्कूल द्वारा चलाई जा रही ऑनलाइन कक्षा में उपस्थित होकर पढ़ाई करें और बताए हुए होमवर्क आदि को नोट कर अपने सत्र की नियमित पढ़ाई मे लगे रहे ताकि उनका यह सत्र कोरोना के कारण बाधित ना हो।
ऑनलाइन क्लासेस चलने पर भौतिक रूप से छात्र, स्कूल का स्टाफ आदि स्कूल में उपस्थित नहीं होता है इस कारण स्कूल के रखरखाव और वहां की सुविधा आदि से संबंधित शुल्कों को छात्रों के शिक्षण शुल्क से हटा देना चाहिए ऐसा न्याय धारा का मानना है ताकि अभिभावकों पर लाॅक डाउन के बाद अतिरिक्त बोझ न पड़े तथा बच्चों की पढ़ाई का सत्र शून्य ना हो विद्यालयों को यह चाहिए कि वह शिक्षण शुल्क ले और शिक्षण शुल्क के अतिरिक्त अन्य शुल्को पर विचार करें जो शुल्क हटाए जा सकते हैं उन्हें हटा देना चाहिए।

क्योंकि विद्यालय का उद्देश्य धन कमाना नहीं अपितु देश के बच्चों को ज्ञान और संस्कार देना है इस बात का विशेष ध्यान रखना होगा।
ऑनलाइन पढ़ा रहे अध्यापकों पर अत्यधिक मात्रा में मानसिक और शारीरिक दोनों ही श्रम पड़ता हैं क्योंकि ऑनलाइन पढ़ाने की विदा का जन्म अभी कोरोना काल में ही हुआ है इस कारण अनेकों कठिनाइयां आ रही हैं फोन पर सभी छात्रों को कॉल करना उन्हें वीडियो ऐप में जोड़ने के लिए लिंक भेजना तथा ऑनलाइन क्लासेज के शेड्यूल को बनाना और उसको पढ़ाना इसी के साथ बच्चों के पाठ्यक्रम का भी ध्यान रखना और जो बच्चे उपस्थित हुए हैं उनकी उपस्थिति की सूचना विद्यालय को नियमित रूप से देना।

पढ़ाए गए पाठ्यक्रम के विषय में विद्यालय को सूचित करना ऑनलाइन कक्षा को बच्चों के लिए रोचक बनाए रखना ताकि बच्चे जुड़े रहें और पढ़ाई करें। इसके उपरांत विद्यालय द्वारा मीटिंग को ऑनलाइन अटेंड करना और अनेकों अनेक सुबह से शाम तक फोन करना कुल मिलाकर ऑनलाइन पढ़ाने वाले अध्यापकों का जीवन मोबाइल कॉलिंग ऑनलाइन बनकर रह गया है ऐसे में इनकी मेहनत को देखते हुए इन्हें अतिरिक्त पारिश्रमिक दिया जाना आपेक्षिक होगा।

परंतु इतनी अत्याधिक कठिन परिश्रम करने के बाद भी अध्यापकों को अतिरिक्त पारिश्रमिक तो दूर उनका प्रतिमाह का पारिश्रमिक यदि समय से मिल जाए तो यह बहुत बड़ी बात होगी वैसे भी प्राइवेट विद्यालयों द्वारा अध्यापकों को पारिश्रमिक सरकारी मानकों से भी कम दिया जाता है यह बात सभी को पता है इस समस्या के समाधान के लिए सरकार को आगे आना होगा नियमों को कड़ाई से पालन कराना होगा तथा इस विषय पर समय-समय पर निरीक्षण भी करना होगा ताकि देश का भविष्य जो कि आज का छात्र है उसे शिक्षा और संस्कार ठीक ढंग से मिल सके।