आज भारत ही नहीं बल्कि संपूर्ण विश्व ईस्वी कैलेंडर नव वर्ष 2020 के आगमन को खुशियों से मनाने में डूबा हुआ है। विश्व में इसका सेलिब्रेशन देखकर यह प्रमाणित होता है कि अंग्रेजों ने लगभग संपूर्ण विश्व में अपना साम्राज्य स्थापित किया था जिसके प्रभाव स्वरूप उनका ईस्वी कैलेंडर संपूर्ण विश्व के चलन और प्रचलन दोनों में पूरी तरह से व्याप्त है।
भारत में अंग्रेजों ने 190 वर्षों तक राज किया और यहां के सहिष्णु लोगों में, अंग्रेजी मानसिकता काफी अच्छी तरीके से अपना स्थान बना चुकी है। आज यहां के बच्चों में ईस्वी नव वर्ष का जो उत्साह देखा जा रहा है वह बहुत ही रोचक है जबकि भारतीय वर्ष बड़ा ही पुरातन है, जिसकी रचना राजा विक्रमादित्य ने संवत्सर के रूप मे श्रृष्टि श्रृजन दिवस से प्रारम्भ की थी। विक्रम संवत्सर 2076 वर्तमान में चल रहा है जो कि ईस्वी वर्ष से लगभग 56 वर्ष पहले का है अर्थात विक्रम संवत्सर विश्व के ईस्वी कैलेंडर से 56 वर्ष पूर्व में शुरू हुआ था अर्थात भारत विश्व में इस गणना के आधार पर 56 वर्ष भविष्य में चल रहा है और भविष्य का हर मानव भूतकाल के यानी वर्ष 2020 के लोगों को कैलेंडर के नववर्ष की बधाई दे रहा है जो कि एक आश्चर्यचकित घटना है।
यह घटना हर वर्ष देखने को मिलती है अधिकांश सहिष्णु भारतीय लोगों को, अपने वर्ष का ज्ञान नहीं है अपनी पुरातन संस्कृति से भी वह अनभिज्ञ होते जा रहे हैं इसका सबसे बड़ा कारण यहां पर इस्लाम ने अपना साम्राज्य स्थापित कर रखा था तथा मुगलों ने आक्रमण कर अपना आधिपत्य जमा लिया था। यहां की पुरातन संस्कृति को नष्ट किया गया। यहां के प्राचीन मंदिर नालंदा गुरुकुल आदि सब तहस-नहस कर विध्वंस कर दिए गए थे जिसके कारण यहां का ज्ञान, विज्ञान, गणित, साहित्य आदि को बड़े ही हिंसक तरीके से नष्ट किया गया ताकि यहां की पहचान और संस्कृत खत्म हो जाए।
यहाँ के सहिष्णु सनातन भारतियों को धर्म परिवर्तन करा कर हिंदू रीति रिवाजों को आडंबर की संज्ञा देकर उन्हें नीचा दिखा कर अपमानित कर जुर्म आदि कई तरीकों से नष्ट करने का प्रयास किया गया यह अत्याचार 1200 वर्षो तक इस्लाम ने अलग अलग तरीके से किए और अपने धर्म को कट्टरता से लागू किया और खूब फूलता फलता रहा। इसके बाद जब अंग्रेज भारत में आए ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना की और धीरे-धीरे उन्होंने यहां के छोटे-छोटे राजाओं पर अपना प्रभुत्व जमा लिया। फिर अंग्रेजों ने यहां की जनता पर लगभग 200 वर्ष राज्य किया। धीरे धीरे रही बच्ची यहां की जो संस्कृति थी वह भी मिश्रित संस्कृति होती चली गई। अर्थात हिन्दू और इस्लाम दोनों धर्मो के प्रभाव से मिली जुली संस्कृति बन गई थी और उस पर अब अंग्रेजो का चाबुक चलने लगा था।
ईसाइयत ने अपना प्रभाव डालना शुरू कर दिया धीरे-धीरे अब उसमें भी यहां की जनता मिलती गई और यहां की संस्कृति पर क्रिस्चियन इस्लाम और हिंदू इनका प्रभाव पड़ा बाद के अत्याचार अधिक होने के कारण यहां विद्रोह होना शुरू हो गया। फिर धीरे धीरे विद्रोह की आग बढती गयी जिसके फलस्वरूप काफी बलिदान के बाद देश आजाद हुआ परंतु यहां की खोई हुई संस्कृति खोया हुआ विशुद्ध धर्म देश उसे पुनः स्थापित नहीं किया जा सका। इसका सबसे बड़ा उदाहरण है आज यहां के जो बच्चे हैं वह ईस्वी के कैलेंडर को ही जानते हैं उन्हें भारतीय वर्ष के विषय में जानकारी ना के बराबर है जबकि भारतीय वर्ष प्रतिवर्ष अपने एक अलग नाम से होता है जैसे कि आगामी विक्रम संवत 2077 जो कि चैत्र नवरात्र से प्रारंभ होगा उसका नाम है प्रमादी नाम संवत्सर अर्थात इस वर्ष का नाम प्रमादी है वर्ष के नाम के अनुसार वर्ष का फल भी होता है। यह भी एक बड़ी विशेषता है। जबकि ऐसी विशेषता किसी अन्य कैलेंडर वर्ष की गणना में नहीं है।
हमारे विक्रम संवत वर्ष का पूर्ण स्वरूप वैज्ञानिक ज्योतिष और खगोली गणित पर आधारित है इसमें नक्षत्र घड़ी ग्रहण सूर्योदय सूर्यास्त चंद्रोदय चंद्रमा की स्थितियां चंद्रमा 15 दिन तक घटते घटते अदृश्य हो जाता है उस दिन अमावस हो जाती है और उसके बाद फिर प्रतिदिन एक-एक दिन बढ़ते बढ़ते 15 दिन बाद पूरा चंद्रमा दिखता है उस दिन पूर्णिमा हो जाती है अर्थात चंद्रमा के इस घटते और बढ़ते क्रम मे घटते क्रम को कृष्ण पक्ष और बढ़ते क्रम को शुक्ल पक्ष कहते है। इसे दो पखवाड़े़े में बांटा गया है अर्थात कृष्ण पक्ष 15 दिन का शुक्ल पक्ष 15 दिन का दोनों पखवाड़े़े को मिलाकर 1 माह होता है अर्थात चंद्रमा की इस कला को पूर्णिमा से अमावस और अमावस से फिर पूर्णिमा इस पर आधारित है अपना वर्ष
जोकि पूर्ण खगोलीय गणित पर आधारित है।
हमारे हिंदू नव वर्ष विक्रम संवत मे यही नहीं इसके अतिरिक्त इसमे 27 नक्षत्र 12 राशियां होती हैं इनकी भी इसमें गणना की गई है इसका ज्ञान रखने वाला व्यक्ति भविष्य में होने वाली घटनाओं को भी गणित के आधार पर बड़ी सरलता से खगोली ज्ञात तथा परिवर्तन आदि को जान सकता है परंतु बड़े दुख की बात है कि इतना अच्छा ज्ञान हमारे भारतीय बच्चों में नहीं दिया जा रहा है वह केवल ईस्वी कैलेंडर को ही समझ पा रहे हैं एक बात और वर्ष जब बदलता है तो उस बदलने का कारण भी होना चाहिए अर्थात सृष्टि के श्रृजन की रचना कब हुई किस दिन से किस घड़ी से सृष्टि का निर्माण शुरू हुआ वह पल वह घड़ी वह दिन जिस पर वर्ष की गणना होनी चाहिए जो कि विक्रम संवत में इस बात का ध्यान रखा गया है चैत्र नवरात्र के प्रारंभ में प्रकृति को आप जब देखेंगे तो प्रकृति की उत्पत्ति अंकुरित होते पौधे बदलता सुगंधित मौसम अपने आप में कुछ कहता है जबकि ईस्वी सन कैलेंडर के बदलने पर ना ही कोई मौसम बदल रहा है ना ही सत्र बदल रहा है और ना ही यह सृष्टि के सृजन दिवस का समय है अर्थात प्राकृतिक गणना के आधार पर इसमें कोई कारण नहीं समझ में आ रहा है जबकि भारतीय विक्रम संवत में यह विशेषता है और आज हम भारतीयों को अपनी संस्कृति धरोहर को समझना चाहिए और अपने बच्चों को इस ज्ञान से भी अवगत कराना चाहिए ताकि वह इसका लाभ उठा सकें। और भारत को पुनः विश्वगुरू बनाने मे सहायक सिद्ध हो ।https://nyaydhara.page/article/vishv-ke-nav-varsh-par-bhavishy-maanav-kee-badhaee/3G8_fM.html
भारत में अंग्रेजों ने 190 वर्षों तक राज किया और यहां के सहिष्णु लोगों में, अंग्रेजी मानसिकता काफी अच्छी तरीके से अपना स्थान बना चुकी है। आज यहां के बच्चों में ईस्वी नव वर्ष का जो उत्साह देखा जा रहा है वह बहुत ही रोचक है जबकि भारतीय वर्ष बड़ा ही पुरातन है, जिसकी रचना राजा विक्रमादित्य ने संवत्सर के रूप मे श्रृष्टि श्रृजन दिवस से प्रारम्भ की थी। विक्रम संवत्सर 2076 वर्तमान में चल रहा है जो कि ईस्वी वर्ष से लगभग 56 वर्ष पहले का है अर्थात विक्रम संवत्सर विश्व के ईस्वी कैलेंडर से 56 वर्ष पूर्व में शुरू हुआ था अर्थात भारत विश्व में इस गणना के आधार पर 56 वर्ष भविष्य में चल रहा है और भविष्य का हर मानव भूतकाल के यानी वर्ष 2020 के लोगों को कैलेंडर के नववर्ष की बधाई दे रहा है जो कि एक आश्चर्यचकित घटना है।
यह घटना हर वर्ष देखने को मिलती है अधिकांश सहिष्णु भारतीय लोगों को, अपने वर्ष का ज्ञान नहीं है अपनी पुरातन संस्कृति से भी वह अनभिज्ञ होते जा रहे हैं इसका सबसे बड़ा कारण यहां पर इस्लाम ने अपना साम्राज्य स्थापित कर रखा था तथा मुगलों ने आक्रमण कर अपना आधिपत्य जमा लिया था। यहां की पुरातन संस्कृति को नष्ट किया गया। यहां के प्राचीन मंदिर नालंदा गुरुकुल आदि सब तहस-नहस कर विध्वंस कर दिए गए थे जिसके कारण यहां का ज्ञान, विज्ञान, गणित, साहित्य आदि को बड़े ही हिंसक तरीके से नष्ट किया गया ताकि यहां की पहचान और संस्कृत खत्म हो जाए।
यहाँ के सहिष्णु सनातन भारतियों को धर्म परिवर्तन करा कर हिंदू रीति रिवाजों को आडंबर की संज्ञा देकर उन्हें नीचा दिखा कर अपमानित कर जुर्म आदि कई तरीकों से नष्ट करने का प्रयास किया गया यह अत्याचार 1200 वर्षो तक इस्लाम ने अलग अलग तरीके से किए और अपने धर्म को कट्टरता से लागू किया और खूब फूलता फलता रहा। इसके बाद जब अंग्रेज भारत में आए ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना की और धीरे-धीरे उन्होंने यहां के छोटे-छोटे राजाओं पर अपना प्रभुत्व जमा लिया। फिर अंग्रेजों ने यहां की जनता पर लगभग 200 वर्ष राज्य किया। धीरे धीरे रही बच्ची यहां की जो संस्कृति थी वह भी मिश्रित संस्कृति होती चली गई। अर्थात हिन्दू और इस्लाम दोनों धर्मो के प्रभाव से मिली जुली संस्कृति बन गई थी और उस पर अब अंग्रेजो का चाबुक चलने लगा था।
ईसाइयत ने अपना प्रभाव डालना शुरू कर दिया धीरे-धीरे अब उसमें भी यहां की जनता मिलती गई और यहां की संस्कृति पर क्रिस्चियन इस्लाम और हिंदू इनका प्रभाव पड़ा बाद के अत्याचार अधिक होने के कारण यहां विद्रोह होना शुरू हो गया। फिर धीरे धीरे विद्रोह की आग बढती गयी जिसके फलस्वरूप काफी बलिदान के बाद देश आजाद हुआ परंतु यहां की खोई हुई संस्कृति खोया हुआ विशुद्ध धर्म देश उसे पुनः स्थापित नहीं किया जा सका। इसका सबसे बड़ा उदाहरण है आज यहां के जो बच्चे हैं वह ईस्वी के कैलेंडर को ही जानते हैं उन्हें भारतीय वर्ष के विषय में जानकारी ना के बराबर है जबकि भारतीय वर्ष प्रतिवर्ष अपने एक अलग नाम से होता है जैसे कि आगामी विक्रम संवत 2077 जो कि चैत्र नवरात्र से प्रारंभ होगा उसका नाम है प्रमादी नाम संवत्सर अर्थात इस वर्ष का नाम प्रमादी है वर्ष के नाम के अनुसार वर्ष का फल भी होता है। यह भी एक बड़ी विशेषता है। जबकि ऐसी विशेषता किसी अन्य कैलेंडर वर्ष की गणना में नहीं है।
हमारे विक्रम संवत वर्ष का पूर्ण स्वरूप वैज्ञानिक ज्योतिष और खगोली गणित पर आधारित है इसमें नक्षत्र घड़ी ग्रहण सूर्योदय सूर्यास्त चंद्रोदय चंद्रमा की स्थितियां चंद्रमा 15 दिन तक घटते घटते अदृश्य हो जाता है उस दिन अमावस हो जाती है और उसके बाद फिर प्रतिदिन एक-एक दिन बढ़ते बढ़ते 15 दिन बाद पूरा चंद्रमा दिखता है उस दिन पूर्णिमा हो जाती है अर्थात चंद्रमा के इस घटते और बढ़ते क्रम मे घटते क्रम को कृष्ण पक्ष और बढ़ते क्रम को शुक्ल पक्ष कहते है। इसे दो पखवाड़े़े में बांटा गया है अर्थात कृष्ण पक्ष 15 दिन का शुक्ल पक्ष 15 दिन का दोनों पखवाड़े़े को मिलाकर 1 माह होता है अर्थात चंद्रमा की इस कला को पूर्णिमा से अमावस और अमावस से फिर पूर्णिमा इस पर आधारित है अपना वर्ष
जोकि पूर्ण खगोलीय गणित पर आधारित है।
हमारे हिंदू नव वर्ष विक्रम संवत मे यही नहीं इसके अतिरिक्त इसमे 27 नक्षत्र 12 राशियां होती हैं इनकी भी इसमें गणना की गई है इसका ज्ञान रखने वाला व्यक्ति भविष्य में होने वाली घटनाओं को भी गणित के आधार पर बड़ी सरलता से खगोली ज्ञात तथा परिवर्तन आदि को जान सकता है परंतु बड़े दुख की बात है कि इतना अच्छा ज्ञान हमारे भारतीय बच्चों में नहीं दिया जा रहा है वह केवल ईस्वी कैलेंडर को ही समझ पा रहे हैं एक बात और वर्ष जब बदलता है तो उस बदलने का कारण भी होना चाहिए अर्थात सृष्टि के श्रृजन की रचना कब हुई किस दिन से किस घड़ी से सृष्टि का निर्माण शुरू हुआ वह पल वह घड़ी वह दिन जिस पर वर्ष की गणना होनी चाहिए जो कि विक्रम संवत में इस बात का ध्यान रखा गया है चैत्र नवरात्र के प्रारंभ में प्रकृति को आप जब देखेंगे तो प्रकृति की उत्पत्ति अंकुरित होते पौधे बदलता सुगंधित मौसम अपने आप में कुछ कहता है जबकि ईस्वी सन कैलेंडर के बदलने पर ना ही कोई मौसम बदल रहा है ना ही सत्र बदल रहा है और ना ही यह सृष्टि के सृजन दिवस का समय है अर्थात प्राकृतिक गणना के आधार पर इसमें कोई कारण नहीं समझ में आ रहा है जबकि भारतीय विक्रम संवत में यह विशेषता है और आज हम भारतीयों को अपनी संस्कृति धरोहर को समझना चाहिए और अपने बच्चों को इस ज्ञान से भी अवगत कराना चाहिए ताकि वह इसका लाभ उठा सकें। और भारत को पुनः विश्वगुरू बनाने मे सहायक सिद्ध हो ।https://nyaydhara.page/article/vishv-ke-nav-varsh-par-bhavishy-maanav-kee-badhaee/3G8_fM.html
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