Artistic Talent

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Wednesday, 28 April 2021

मृत्यु का तांडव

https://www.nyaydhara.page/2021/04/blog-post_28.html

जो वर्तमान समय में संपूर्ण विश्व की मानव जाति के ऊपर एक बहुत बड़ी विपदा चल रही है ऐसे में मानव का जीवन अपार संकट से घिरा हुआ है लोग डरे हुए हैं हतोत्साहित हैं और अपनों को खोने का डर तो है ही परंतु उससे कहीं अधिक स्वयं की सुरक्षा को लेकर मन व्यथित है। 

प्रकृति का दूसरा नाम संतुलन है क्योंकि प्रकृति का यदि हम अध्ययन करते हैं तो हम पाएंगे की प्रकृति में जो भी हमें दिख रहा है उस को संतुलित करने का एक चक्र बना हुआ है। हर जीव बनस्पति एक दूसरे पर आधारित है जैसे पेड़ों को हम देखें तो वह दिन में ऑक्सीजन देते हैं और रात को कार्बन डाइऑक्साइड अर्थात ऑक्सीजन और कार्बन डाइऑक्साइड का प्रकृति में संतुलन स्थापित हो रहा है सूर्य का पूर्व से निकलना शाम को पश्चिम दिशा में अस्त होना ऋतुओं का समय से आना  और जाता आदि सभी का एक क्रमबद्ध सुसज्जित संचालन होना यह सब प्रमाणित करता हैं कि इन सब को संचालित करने वाली कोई शक्ति तो है अब हम अपने जीवन  पर ही देखें तो पाएंगे कि जीवन और मृत्यु का भी चक्र प्रकृति के द्वारा संचालित हो रहा है। 

विज्ञान, अध्यात्म और प्रकृति के बीच में हमारा जीवन झूल रहा है एक तरफ विज्ञान ने बहुत ही उन्नत की है और वह विपरीत परिस्थितियों में भी अधिकांशतः जीवन बचाने में सफल रहती है परंतु मृत्यु पर सफलता नहीं मिल पाई है कहने का तात्पर्य है कि हमने विज्ञान की खोजों से अकाल मृत्यु से अकाल मृत्यु तक बहुत उन्नत की है परंतु मृत्यु का उपचार नहीं ढूंढ पाए हैं। सनातन धर्म के वेदों पुराणों में भी अकाल मृत्यु के उपचार  विभिन्न प्रकार से बताए गए हैं परंतु अमरत्व को नकारा गया है। मनुष्य का शरीर नाशवान है हाड़ मांस का बना शरीर अमर नहीं हो सकता इसीलिए इस लोक का नाम मृत्युलोक है नाशवान शरीर का सबसे बड़ा कारण है प्रकृति का संतुलन। 

कोविड-19 नामक रोग कैसे सृष्टि में आया किस नकारात्मक सोच के वैज्ञानिक की उत्पत्ति का फल है जिसे आज पूरी मानव जाति भोग रही है। मानव जाति के जीवन को सहज में समाप्त करने का चक्र प्रकृति के वातावरण में व्याप्त हो गया है। इस बीमारी को प्रकृति की विनाश लीला कहना उचित होगा क्योंकि प्रकृति संतुलन करती है और मानव जाति की अपार जनसंख्या अनियंत्रित हो रही है जिसका संतुलन प्रकृति अपने ढंग से करने लगी है। हमारा मानना है कि हम सभी प्रकृति के अधीन हैं और इस प्रकृति ने जनसंख्या नियंत्रण करने की ठान ली है। भारत सरकार जनसंख्या नियंत्रण पर कानून लाए या न लाए प्रकृत ने तो इस पर काम आरंभ भी कर दिया है। 

इस बीमारी के प्रथम चरण में लॉक डाउन के कारण अधिकांश लोग सुरक्षित हो गए थे परंतु कोरोना के द्वितीय चरण का रूप अपनी उग्रता में आ गया है और वातावरण में व्याप्त है इसके संक्रमण की तीव्रता इतनी अधिक है कि 3 से 4 दिन में मानव शरीर के फेफड़े अपना कार्य करना बंद कर देते हैं और ऑक्सीजन की कमी के कारण दम घुट कर मौत हो रही है विज्ञान ने कितनी भी उन्नति कर ली पर ऐसी विषम परिस्थितियों को नियंत्रित करने के लिए समय चाहिए जबकि यह बीमारी के उग्र रूप ने समय सीमा को अल्प कर दिया है चारों तरफ हम और आपके सम्पर्क, जान-पहचान में आने वाले उन लोगों के मरने की सूचना से हम सभी दुखी हैं।

मौत प्रत्यक्ष नहीं आती वह कोई कारण लेकर ही आती है आज जो मृत्यु दर बढ़ती जा रही है उसमें कई कारण सामने आ रहे हैं जैसे कि अचानक अत्यधिक लोगों का एक साथ कोविड-19 से संक्रमित होना और उसी अनुपात में उपचार हेतु हॉस्पिटलों में संसाधन का न होना, फेफड़े के संक्रमण के लिए सभी को ऑक्सीजन की आपूर्ति समय से न मिल पाना, कॉविड के प्रोटोकॉल की कठिनता का गलत नियत के लोगों द्वारा दुरुपयोग, जीवन रक्षक दवाइयों को 4 से 10 गुना महंगा उपलब्ध होना, मृत्यु दर को गुणोत्तर बढ़ा रही है। वर्तमान समय में मनुष्यों की मानवता वाली सोच दिन पर दिन घटते जाना, आर्थिक युग में जीवन से अधिक महत्व धन को देना आदि ही मृत्यु के तांडव को आमंत्रित करता है।

Wednesday, 27 January 2021

जन आंदोलन का भ्रम जाल

 जनता के लिए प्रजातंत्र श्रेष्ठ जीवन यापन की सामाजिक विधा है जो तानाशाही के विरुद्ध स्वच्छंद जीने के अधिकार को देती है। सामाजिक समानता और समान न्याय के अधिकार को आम जनो को मौलिक अधिकार के रूप में देता है। भारत एक प्रजातंत्र देश है यहां पर सभी धर्म के अनुयाई रहते हैं तथा सभी को समान अधिकार प्राप्त हैं जबकि एक धर्म ने अपना हिस्सा धार्मिक आधार पर ले लिया है फिर भी उसे भी उतना ही अधिकार आज भी प्राप्त है जितना अन्य धर्म को। इसीलिए हिस्सा पाए धर्म की अपेक्षा अन्य धर्म के अधिकारों को कम करने जैसा ही है इस कारण भारत को धर्मशाला भी कहा जा सकता है इसीलिए यहां देशद्रोही और गद्दारों को फलने फूलने का बहुत ही अच्छा अवसर प्राप्त होता है आज जो भारत के 72 वें संविधान दिवस पर घटना हुई है यह घटना इन्हीं बातों का प्रमाण देती है। 

किसान बिल पर आंदोलन करना संविधान में दिए हुए अधिकारों के अंतर्गत है यदि भारत सरकार कोई भी नया कानून लागू करती है तो उसे संसद के दोनों सदनों में बहुमत होने के बाद ही पारित किया जाता है अर्थात भारतवर्ष की जनता का प्रतिनिधित्व करते राज्यसभा और लोकसभा के सांसदों द्वारा ही पारित किया जाता है। राष्ट्रपति जी की संस्तुति के बाद कानून की अधिसूचना जारी होती है यदि इन कानूनों में फिर भी जनता को आपत्ति होती है तो वह अपनी बात रखने के लिए अपनी मांगों को पूरा कराने के लिए आंदोलन, वार्ता, प्रदर्शन, अनशन आदि का सहारा लेते हैं इसलिए आंदोलन करना, प्रदर्शन करना गलत नहीं है परंतु आंदोलन की आड़ में राष्ट्रद्रोह करना, जनता को क्षति पहुंचाना, राष्ट्रीय संपत्ति का नुकसान करना, तोड़फोड़ करना, उग्रता, आगजनी करना, दंगा फैलाना, पुलिस बल को चुनौती देकर, मारने का प्रयास करना और राष्ट्रीय सम्मान स्वरूप लाल किले में तिरंगे झंडे को हटाकर अन्य झंडा लगाना, भारत सरकार को और भारत की संवैधानिक चुनी गई सरकार को, उखाड़ फेंकने जैसा है। 

पश्चिमी बंगाल के चुनाव के पूर्व ऐसे आंदोलन की आड़ में उग्रता इतनी की गई कि सरकार आंदोलनकारियों की उग्रता को नियंत्रित करने के लिए गोली चलाने पर मजबूर हो जाए और यदि मोदी सरकार इन उग्र आंदोलनकारियों पर गोलियां चलवा देते अथवा पुलिस प्रशासन द्वारा गोली चलाई जाति तो सभी विपक्षी पार्टियां मिलकर पुनः मोदी सरकार को बदनाम करते और लोकतंत्र की दुहाई देते ताकि पश्चिमी बंगाल में होने वाले आगामी चुनाव पर इसका लाभ उठा सकें और वहां पर भाजपा सरकार को सत्ता में आने से रोकने में सफल हो जाते। 

शाहीन बाग का आंदोलन भी दिल्ली राज्य के चुनाव के पूर्व ही आयोजित किया गया था अर्थात दिल्ली चुनाव में जीत के लिए राजनीतिक पार्टियों द्वारा प्रायोजित आंदोलन अब देश में हो रहे हैं और इन आंदोलन के पीछे अराजक तत्वों को सक्रिय किया जाता है ताकि देश की प्रभुता, अखंडता और एकता को तोड़ा जाए तथा इसकी आड़ में भारतीय जनता में भ्रम उत्पन्न हो और वह निर्णय न ले सके कि सही क्या है और गलत क्या कुल मिलाकर देश में देश की जनता को भ्रमित करने की नयी विधि इस प्रकार के आंदोलन हैं। शाहीन बाग़ के आंदोलन की आड़ में दिल्ली में दंगा हुआ आईबी का अधिकारी भी मारा गया और देश को विश्व समुदाय में बदनाम करने का षड्यंत्र भी सामने आया। 

उसी प्रकार किसानों की ट्रैक्टर रैली ने भी एक बार यह सिद्ध कर दिया कि आंदोलन किसानों का नहीं अपितु इस आंदोलन की फंडिंग विदेशों से हो रही है तथा देश को तोड़ने के लिए दंगाइयों को इसमें सम्मिलित किया गया। इतना बड़ा आंदोलन देश के अंदर और वह भी देश की राजधानी दिल्ली में करना बिना किसी राजनैतिक सहयोग के संभव नहीं है इसलिए जो राजनीतिक पार्टी सत्ता से विरत बैठी हुई हैं उनका ऐसी अराजक रैलियों में योगदान होना संभावित है इन आंदोलनों को ठेका आंदोलन भी कह सकते हैं जिनका काम है देश की जनता को भ्रमित करना और देश की एकता और अखंडता को चोट पहुंचाना तथा जनता द्वारा चुनी गई संवैधानिक सरकार को उखाड़ फेंकना है। 

जबकि दिल्ली में ट्रैक्टर रैली के कुकृत्य ने देश को शर्मिंदा किया है। भारत के उन सभी बलिदान हुए देशभक्तों का अपमान किया है जिन्होंने देश की स्वाधीनता के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया। वास्तव में किसान की आड़ में यह खालिस्तानी और उग्रवादी लोग थे जिन्होंने यहां के किसान नेताओं के सहयोग से दिल्ली की सड़कों पर तांडव मचाया और लाल किले में खालिस्तानी झंडा फहराया इस घटना के पीछे जनता का मानना है कि राजनैतिक सहयोग निश्चित रूप से रहा है और सबसे ध्यान देने वाली बात यह है कि इस रैली में आए हुए सभी ट्रैक्टर नए थे और उनमें नंबर प्लेट नहीं लगी थी।

अर्थात बिना नंबर प्लेट के हजारों की संख्या में आए हुए नए ट्रैक्टर कहीं ना कहीं से तो आए हैं और जिसने भी यह ट्रैक्टर रैली के लिए दिया है वह भी इस साजिश में बराबर का हिस्सेदार है इसलिए भारत सरकार को चाहिए कि वह ऐसे दंगाइयों को, आंदोलन की आड़ में दंगा करने वालों पर राष्ट्रद्रोह लगाकर राष्ट्र में हुए नुकसान की भरपाई 10 गुना तक इन से अधिक वसूल की जाए ताकि आने वाले दिनों में इस प्रकार के उग्र आंदोलन की आड़ में दंगे न हो जबकि इस उग्रता में पुलिस के 100 से अधिक जवान घायल हुए हैं। यह पुलिस वाले भी भारत के नागरिक हैं और इन्हें न्याय कैसे मिले इस पर भी अहम सब को विचार करना चाहिए।